कर्मयोग
काहे को सोच करे मनवा तूँ! होनहार सब होता प्यारे
मंत्र जाप से शांति मिले पर, विधि -विधान को कैसे टारे
कर्म किया हो जैसा तुमने, तदनुसार प्रारब्ध बना है
जैसी करनी वैसी भरनी, नियमबद्ध सब कुछ होना है
हरिश्चन्द्र, नल, राम, युधिष्ठिर, नाम यशस्वी दुनिया जाने
पाया कष्ट गये वो वन में, कर्म-भोग श्रुति शास्त्र बखाने
शत्रु मित्र हम अपने होते, प्रभु व्याप्त सब जड़ चेतन में
पाप जले बस कर्मयोग से, धर्माचरण करो जीवन में

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