कालिया नाग का उद्धार
कालिया-नाग पर नृत्य किया, साँवरिया का यह अभिनय था
यमुना जल विष की गर्मी से, दिन रात खौलता रहता था
कालिय-दह में हरि कूद गये, निडर हो उसमें खेल रहे
भय से मूर्छित सब ग्वाल-बाल, अपनी पीड़ा को किसे कहें
जीवन सर्वस्व गोपियों के, उनको कालिय ने जकड़ लिया
फिर तो शरीर मोटा करके, हरि ने अपने को छुड़ा लिया
कालिया-नाग के मस्तक पर, श्रीकृष्ण कलामय नृत्य करें
तब वाद्य लिये गंधर्व सिद्ध, प्रभु के यश का गुणगान करें
जब नाग की शक्ति हुई क्षीण, हो गया मूर्छित वहाँ जभी
सब नाग-पत्नियाँ अस्त व्यस्त, स्तुति प्रभु की करें सभी
करुणासागर तब श्री हरि ने, कालिया नाग को छोड़ दिया
तुम रमणक द्वीप जले जाओ, कह सब को हर्ष प्रदान किया 

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