विरह व्यथा
कान्हा! थारी जोवत रह गई बाट
जोवत-जोवत इक पग ठाढ़ी, कालिन्दी के घाट
छल की प्रीति करी मनमोहन, या कपटी की बात
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, ब्रज को कियो उचाट

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