युगल स्वरूप
कृष्ण राधिका, राधा कृष्ण, तत्व रूप से दोनों एक
राधे श्याम, श्याम राधिके, भिन्न तथापि अभिन्न विवेक
राधामय जीवन ही कृष्ण का, कृष्णचन्द्र ही जीवन रूप
ऐकमेकता दिव्य युगल की, सदा एकरस तत्व अनूप
दो के बिना न संभव होता, वितरण लीला का आस्वाद
इसीलिये तो तन-मन से वे, लीला करते-निर्विवाद
नित्य नया सुख देने को ही, बना परस्पर ऐसा भाव
एक दूसरे के मन की ही, करते रहते यही स्वभाव
राधा शरण ग्रहण करके ही, सुलभ हमें हो नित्यानंद
मिट जाये मन का भ्रम सारा, मिटे जगत् के सारे द्वंद

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *