Mai Moko Chand Lagyo Dukh Den

विरह व्यथा
माई, मोकौं चाँद लग्यौ दुख दैन
कहँ वे स्याम, कहाँ वे बतियाँ, कहँ वह सुख की रैन
तारे गिनत गिनत मैं हारी, टपक न लागे नैन
‘सूरदास’ प्रभु तुम्हारे दरस बिनु, विरहिनि कौं नहिं चैन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *