असार संसार
मन फूला-फूला फिरे जगत में कैसा नाता रे
मात कहै यह पुत्र हमारा, बहन कहै वीर मेरा रे
भाई कहै यह भुजा हमारी, नारी कहै नर मेरा रे
पेट पकड़ के माता रोवे, बाँह पकड़ के भाई रे
लपटि झपटि के तिरिया रोवे, हंस अकेला जाई रे
चार गजी चादर मँगवाई, चढ़ा काठ की घोड़ी रे
चारों कोने आग लगाई, फूँक दिया जस होरी रे
हाड़ जरै लकड़ी के जैसे, केस जरै जस घासा रे
सोना ऐसी काया जर गई, कोई न आया पासा रे
घर की तिरिया ढूँढन लागी, ढूँढ फिरी चहुँ देसा रे
कहे ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, छोड़ जगत की आसा रे

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