सीख
मान ले मनवा मूरख तू, अब तो भज नाम निंरजन का
माँ-उदर में जिसने पेट भरा, अब पेट के काज तू क्यों भटके
दुनियाँ का पोषण जो करता, वह पालनहार तेरे तन का
ये मात-पिता, भाई-बंधु, बेटा अरु, माल मकान सभी
कोई वस्तु नहीं स्थिर है यहाँ, करले तू काम भलाई का
ये काल कराल फिरे सिर पे, घर-बार सभी रह जाय यहीं
‘ब्रह्मानंद’ विचार करो कुछ तो, कर ध्यान सदा भव-भंजन का

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