कन्हैया का जादू
माथे पर गागर धर पनिया भरन चली
जमना के तीर सुन वेणु को अटकी
नंदजी को लाल प्यारो, कदंब के नीचे ठाड़ो
अँखियन की चोट मेरे, हिय माँह खटकी
एक घरी बीत गई, तन की सुध ना रही
ठगोरीसी ठाड़ी भई, छूटी कर मटकी
मोहन को रूप निरख, प्रेम को प्रवाह चल्यो
लोक-कुल-लाज काज, सब दियो पटकी  

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