म्हारा साथी
म्हारे जनम-मरण रा साथी, थाँने नहिं बिसरूँ दिन राती
थाँ देख्याँ बिन कल न पड़त है, जाणत मोरी छाती
ऊँची चढ़-चढ़ पंथ निहारूँ, रोय-रोय अँखिया राती
यो संसार सकल जग झूँठो, झूँठा कुल रा न्याती
दोउ कर जोड्याँ अरज करूँ छू, सुणल्यो म्हारी बाती
यो मन मेरो बड़ो हरामी, ज्यूँ मदमातो हाथी
सत्गुरू हाथ धर्यो सिर ऊपर, आँकुस दे समझाती
पल-पल पिय को रूप निहारूँ, निरख निरख सुख पाती
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरि चरणाँ चित राती

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