शरणागति
म्हारी सुध किरपा कर लीजो
पल पल ऊभी पंथ निहारूँ, दरसण म्हाने दीजो
मैं तो हूँ बहु ओगुणवाली, औगुण सब हर लीजो
मैं दासी थारे चरण-कँवल की, मिल बिछड़न मत कीजो
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरि चरणाँ में लीजो

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