मोहन के गुण
मो से कहा न जाय, कहा न जाय,
मनमोहन के गुण सारे
अविनाशी घट घट वासी, यशुमति नन्द दुलारे
लाखों नयना दरस के प्यासे, वे आँखों के तारे
गोपियन के संग रास रचाये, मुरलीधर मतवारे
शरद पूर्णिमा की रजनी थी, रास रचायो प्यारे
उनके गुण सखि कितने गाऊँ, वे सर्वस्व हमारे 

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