Moko Kahan Dhundhe Re Bande

आत्मज्ञान
मोको कहाँ ढूँढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना पर्वत के वास में
ना जप ताप में, ना ही योग में, ना मैं व्रत उपवास में
कर्म काण्ड में मैं नहीं रहता, ना ही मैं सन्यास में
खोज होय साँची मिल जाऊँ, इक पल की ही तलाश में
कहे ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, मैं तो हूँ विश्वास में

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