मेरी भावना
प्रभुजी! तुमको अर्पित यह जीवन
जीवन बीते सत्कर्मों में, श्रद्धा हो प्रभु की पूजा में
करो हृदय में ध्यान सदा, लगूँ नहीं कभी दुष्कर्मों में
इच्छा न जगे कोई मन में, प्रभु प्रेम-भाव से तृप्त रहूँ
सुख दुख आये जो जीवन में, प्रभु का प्रसाद में जान गहूँ
जो मात-पिता वे जीवन-धन, उनकी सेवा तन मन से हो
हर लो माया सद मोह सकल, प्रभु भक्ति-भाव मय जीवन हो  

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