शरणागति
प्रभु! राखो लाज हमारी
अमृत बना पिया विष मीरा, चरण-कमल बलिहारी
जिन भक्तों ने लिया सहारा, उनकी की रखवारी
खोया समय भोग में मैंने, तुमको दिया बिसारी
पापी कौन बड़ा मेरे से, तुम हो कलिमल हारी
प्रीति-पात्र मैं बनूँ तुम्हारा, संबल दो बनवारी
अविनय क्षमा करो नँदनंदन, आया शरण तुम्हारी
जो चाहे सो रूप धरो हरि, आओ कृष्ण मुरारी

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