माखन चोरी
सखि लाला के मुँह पे मक्खन, मैंने जब लगा हुआ पाया
भोलेपन से कुछ उत्तर दे, चित चुरा कन्हैया भाग गया
जिनके घर अब तक नहीं पहुँचा, लाला मक्खन चोरी करने
अति उत्कण्ठित वे गोपीजन, आ जाये वहीं उपकृत करने
वास्तव में हर ग्वालिन का मन, अटका रहता है मोहन में
वे उपालम्भ देने के मिस, जाती रहती नन्दालय में
मैया जब डाँटे लाला को, वह डरकर रोने लगता है
गोपियाँ बरजती यशुमति को, माँ का मन हल्का होता है

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