श्री सनकादि का उपदेश
सनकादिक देवों के पूर्वज, ब्रह्माजी के मानस ये पूत
मन में जिनके आसक्ति नहीं, वे तेजस्वी प्रज्ञा अकूत
है सदुपदेश उनका ये ही ‘धन इन्द्रिय-सुख के हों न दास’
पुरुषार्थ चतुष्टय उपादेय, सद्भाव, चरित का हो विकास
विद्या सम कोई दान नहीं, सत् के समान तप और नहीं
आसक्ति सदृश न दुख कोई, तप के जैसा सुख नहीं कहीं

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