भगवत्पाद आद्य शंकराचार्य
शंकराचार्य ने जन्म लिया प्रायः सधर्म तब लुप्त ही था
‘शंकरः शंकरः साक्षात्’ उक्ति, अवतार आशुतोष शिव का था
भारत में वैदिक धर्म कर्म, स्थापित शंकर के द्वारा
अद्वैत, द्वैत मत जो भी हैं, अधिकार भेद सचमुच सारा
तो मार्ग समन्वय खोल दिया, जो था विरोध समाप्त किया
वर्णाश्रम धर्म संरक्षित हो, शंकर ने यह सिद्धान्त दिया
शास्त्र, पुराण प्रामाणिक है, अवतार प्रभु के यथार्थ ही हैं
शंकरावतार वे ज्ञान मूर्ति, करुणा-विग्रह स्वरूप ही हैं

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