Sun Ri Sakhi Bat Ek Mori

ठिठोली
सुन री सखी, बात एक मेरी
तोसौं धरौं दुराई, कहौं केहि, तू जानै सब चित की मेरी
मैं गोरस लै जाति अकेली, काल्हि कान्ह बहियाँ गही मेरी
हार सहित अंचल गहि गाढ़े, इक कर गही मटुकिया मेरी
तब मैं कह्यौ खीझि हरि छोड़ौ, टूटेगी मोतिन लर मेरी
‘सूर’ स्याम ऐसे मोहि रीझयौ, कहा कहति तूँ मौसौं मेरी

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