ब्रज की याद
ऊधौ, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं
वृंदावन गोकुल की स्मृति, सघन तृनन की छाहीं
प्रात समय माता जसुमति अरु नंद देखि सुख पावत
मीठो दधि अरु माखन रोटी, अति हित साथ खवावत
गोपी ग्वाल-बाल संग खेलत, सब दिन हँसत सिरात
‘सूरदास’ धनि धनि ब्रजबासी जिनसों हँसत ब्रजनाथ

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