प्रतिज्ञा पालन
वा पटपीत की फहरानि
कर धरि चक्र चरन की धावनि, नहिं बिसरति वह बानि
रथ तें उतरि अवनि आतुर ह्वै, कच रज की लपटानि
मानौं सिंह सैल ते निकस्यौ, महामत्त गज जानि
जिन गुपाल मेरो प्रन राख्यौ, मेटि वेद की कानि
सोई ‘सूर’ सहाय हमारे, निकट भये हैं आनि

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