रास लीला
वन में रास छटा छितराई
चम्पा बकुल मालती मुकुलित, मनमोहक वनराई
कानन में सजधज के गोपियन,रूप धर्यो सुखदाई
शरद पूर्णिमा यमुना-तट पे, ऋतु बसंत है छाई
आकर्षक उर माल सुवेषित अभिनव कृष्ण पधारे
दो-दो गोपी मध्य श्याम ने, रूप अनेकों धारे
राजत मण्डल मध्य कन्हैया, संग राधिका प्यारी
वेणु बजी ताल और लय में, मुरली स्वर रुचिकारी
गले डाल गोपियन के बहियाँ, प्रमुदित श्याम मनोहर
उत्कण्ठित ब्रज-ललनाओं का, विलसित सुभग कलेवर
कानों में झुमके, नक बेसर, स्वर्ण किंकिणी लटके
नूपुर की झंकार गोपियाँ, हृदय तरंगित मटके
हिले क्षीण-कटि सुन्दरियों के, चपल नैन मदमाते
ठुमक-ठुमक पग धरे रास में, राग रागिनी गाते
विविध विलास कला मोहन की, सखियाँ सब हरषार्इं
अधरामृत पी आप्त काम हो, जी की जलन मिटाई
भूतल पर जो महारास की, चिन्मय लीला गाये
श्रवण करे यदि शुद्ध भाव से, हृदय रोग मिट जाये

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