नवधा भक्ति
भूला रहा तू यौवन में, क्यों नहीं समझता अभिमानी
तू राग, द्वेष, सुख, माया में, तल्लीन हो रहा अज्ञानी
जो विश्वसृजक करुणासागर की तन्मय होकर भक्ति करे
प्रतिपाल वहीं तो भक्तों के, सारे संकट को दूर करें
हरि स्मरण कीर्तन, दास्य, सख्य, पूजा और आत्मनिवेदन हो
हरि-कथा श्रवण हो, वन्दन हो, अरु संतचरण का सेवन हो
ये नवधा भक्ति के प्रकार, जिनकी मन में अभिलाषा हो
हो तीर्थ, दान, व्रत जीवन में, इनके प्रति भी उत्कण्ठा हो

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