प्रबोधन
मनुवा खबर नहीं पल की
राम सुमिरले सुकृत करले, को जाने कल की
कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी, झूठ कपट छल की
सिर पर धरली पाप गठरिया, कैसे हो हलकी
तारामण्डल सूर्य चाँद में, ज्योति है मालिक की
दया धरम कर, हरि स्मरण कर, विनती ‘नानक’ की 

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