शरणागति
प्रभु के शरणागत हुआ आज
था अहंकार से उपहत मैं, कुछ कर न सका कर्तव्य काज
इन्द्रिय-विषयों में रमा रहा, नहीं स्मरण किया श्रीकृष्ण तुम्हें
सादर प्रणाम श्रीचरणों में, नहीं भक्त भूलते कभी जिन्हें
मैं ऊब गया जग झंझट से, झँझानिल दुष्कर भवसागर
शरणागत-पालक आप विभो, हे अमित-शक्ति करुणासागर
हे परम पुरुष अन्तर्यामी, करनी मेरी सब दोषयुक्त
मैं विषय भोग में रंमू नहीं, हरि कर्म-जाल से करो मुक्त
विनती सेवा में यही प्रभो! अविलम्ब पकड़लो हाथ आप
कोई न सहारा अब दूजा, मिट जाये सारे पाप-ताप

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