असमंजस
अब मैं कौन उपाय करूँ
जेहि बिधि मनको संसय छूटै, भव-निधि पार करूँ
जनम पाय कछु भलो न कीन्हों, ताते अधिक डरूँ
गुरुमत सुन के ज्ञान न उपजौ, पसुवत उदर भरूँ
कह ‘नानक’ प्रभु बिरद पिछानौ, तब मैं पतित तरूँ
Category: Nanak
Kahe Re Van Dhoondhan Jaai
अन्तर्यामी
काहे रे वन ढूँढन जाई
घट घट वासी सदा अलेपा, तोही संग समाई
पुष्प मध्य ज्यों गंध बसत है, मुकुर माँहि जस छार्इं
तैसे ही हरि बसे निरन्तर, घट घट खोजौ भाई
बाहर भीतर एकौ जानौ, ‘नानक’ ज्ञान बताई
Jagat Main Jhuthi Dekhi Preet
प्रबोधन
जगत् में झूठी देखी प्रीत
अपने ही सुख से, सब लागे, क्या दारा क्या मीत
मेरो मेरो सभी कहत है, हित सौं बाँध्यो चीत
अन्तकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत यह कैसी है नीत
‘नानक’ भव-जल पार परै, जो गावै प्रभु के गीत
Manuwa Khabar Nahi Pal Ki
प्रबोधन
मनुवा खबर नहीं पल की
राम सुमिरले सुकृत करले, को जाने कल की
कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी, झूठ कपट छल की
सिर पर धरली पाप गठरिया, कैसे हो हलकी
तारामण्डल सूर्य चाँद में, ज्योति है मालिक की
दया धरम कर, हरि स्मरण कर, विनती ‘नानक’ की
Ram Sumir Ram Sumir
माया
राम सुमिर, राम सुमिर, यही तेरो काज रे
माया को संग त्याग, प्रभुजी की शरण लाग
मिथ्या संसार सुख, झूठो सब साज रे
सपने में धन कमाय, ता पर तूँ करत मान
बालू की भीत जैसे, दुनिया को साज रे
‘नानक’ जन कहत बात, बिनसत है तेरो गात
छिन-छिन पर गयो काल, तैसे जात आज रे
Re Man Ram So Kar Preet
श्री राम भजो
रे मन राम सों कर प्रीत
श्रवण गोविंद गुण सुनो, अरु गा तू रसना गीत
साधु-संगत, हरि स्मरण से होय पतित पुनीत
काल-सर्प सिर पे मँडराये, मुख पसारे भीत
आजकल में तोहि ग्रसिहै, समझ राखौ चीत
कहे ‘नानक’ राम भजले, जात अवसर बीत