प्रभाती
अब जागो मोहन प्यारे, तुम जागो नन्द दुलारे
हुआ प्रभात कभी से लाला, धूप घरों पर छाई
गोपीजन आतुरतापूर्वक, तुम्हें देखने आर्इं
ग्वाल-बाल सब खड़े द्वार पर, कान्हा ली अँगड़ाई
गोपीजन सब मुग्ध हो रहीं, निरखें लाल कन्हाई
जसुमति मैया उठा लाल को, छाती से लिपटाये
चन्द्रवदन को धुला तभी, माँ मक्खन उसे खिलाये
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Rasna Kyon Na Ram Ras Piti
राम रसपान
रसना क्यों न राम रस पीती
षट-रस भोजन पान करेगी, फिर रीती की रीती
अजहूँ छोड़ कुबान आपनी, जो बीती सो बीती
वा दिन की तू सुधि बिसराई, जा दिन बात कहीती
जब यमराज द्वार आ अड़िहैं, खुलिहै तब करतूती
‘रूपकुँवरि’ मन मान सिखावन, भगवत् सन कर प्रीती
Ab Man Krishna Krishna Kahi Lije
श्रीकृष्ण स्मरण
अब मन कृष्ण कृष्ण कहि लीजे
कृष्ण कृष्ण कहि कहिके जग में, साधु समागम कीजे
कृष्ण नाम की माला लेके, कृष्ण नाम चित दीजे
कृष्ण नाम अमृत रस रसना, तृषावंत हो पीजै
कृष्ण नाम है सार जगत् में, कृष्ण हेतु तन छीजे
‘रूपकुँवरि’ धरि ध्यान कृष्ण को, कृष्ण कृष्ण कहि लीजे
Latak Latak Chalat Chaal
मोहन माधुरी
लटक-लटक चलत चाल, मोहन आवे रे
भावे मन अधर मुरली, मधुर सुर बजावे रे
श्रवण कुण्डल चपल चलन, मोर मुकुट चन्द्रकलन
मन्द हँसन चित्त हरन, मोहनि मुरति राजे रे
भृकुटि कुटिल लोल लोचन, अरुण अधर मधुर बैन
मंथर गति अरु चारु चितवन, भाल पर बिराजे रे
‘लखनदास’ श्याम रूप, नख शिख शोभा अनूप
रसिक रूप निरख वदन, कोटि मदन लाजे रे
Aaj Sakhi Rath Baithe Nandlal
रथ-यात्रा
आज सखी, रथ बैठे नंदलाल
अति विचित्र पहिरे पट झीनो,उर सोहत वन-माल
वामभाग वृषभानु-नंदिनी, पहिर कसूंभी सारी
तैसोई घन उमड्यो चहुँ दिशि, गरजत है अति भारी
सुन्दर रथ मणि-जटित मनोहर, अनुपम है सब साज
चपल तुरंग चलत धरणी पे, रह्यो घोष सब गाज
ताल पखावज बीन बाँसुरी, बाजत परम रसाल
‘गोविंददास’ प्रभु पे बरखत, विविध कुसुम ब्रजबाल
Vaishnav Jan To Tene Kahiye
वैष्णव जन (गुजराती)
वैष्णव जन तो तेणे कहिए, जे पीर पराई जाणे रे
परदुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे
सकल लोक मा सहुने वंदे, निंदा करे न केणी रे
वाच काज मन निश्चल राखे, धन धन जननी तेणी रे
समदृष्टि ने, तृष्णा त्यागी, पर-स्त्री जेणे मात रे
जिह्वा थकी असत्य न बोले, पर धन झाले न हाथ रे
माया मोह न व्यापे जेणे, दृढ़ वैराग जेणा मन माँ रे
रामनाम शुँ ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन माँ रे
निर्लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निरवार्या रे
‘नरसैयो’ तेनुँ दरसन करताँ, कुल एकोतेर तार्या रे
Karahu Prabhu Bhavsagar Se Par
नाम-महिमा
करहुँ प्रभु भवसागर से पार
कृपा करहु तो पार होत हौं, नहिं बूड़ति मँझधार
गहिरो अगम अथाह थाह नहिं, लीजै नाथ उबार
हौं अति अधम अनेक जन्म की, तुम प्रभु अधम उधार
‘रूपकुँवरि’ बिन नाम श्याम के, नहिं जग में निस्तार
Sharnagat Palak Param Prabho
प्रार्थना
शरणागत पालक परम प्रभो, हमको एक आस तुम्हारी है
तुम्हरे सम दूजा और नहीं, कोई दीनन को हितकारी है
सुधि लेत सदा सब जीवों की, अतिशय करुणा उर धारी है
प्रतिपाल करो बिन ही बदले, अस कौन पिता महतारी है
बिसराय तुम्हें सुख चाहत जो, वह तो नादान अनारी है
‘परतापनारायण’ तो तुम्हरे, पद-पंकज पे बलिहारी है
Govind Karat Murali Gan
मुरली माधुर्य
गोविन्द करत मुरली गान
अधर पर धर श्याम सुन्दर, सप्त स्वर संधान
विमोहे ब्रज-नारि, खग पशु, सुनत धरि रहे ध्यान
चल अचल सबकी भई यह, गति अनुपम आन
ध्यान छूटे मुनिजनों के, थके व्योम विमान
‘कुंभनदास’ सुजान गिरिधर, रची अद्भुत तान
Jasoda Kaha Kahon Hon Baat
लाला की करतूत
जसोदा! कहा कहों हौं बात
तुम्हरे सुत के करतब मोसे, कहत कहे नहिं जात
भाजन फोरि, ढोलि सब गोरस, ले माखन-दधि खात
जो बरजौं तो आँखि दिखावै, रंचु-नाहिं सकुचात
और अटपटी कहलौं बरनौ, छुवत पान सौं गात
दास ‘चतुर्भुज’ गिरिधर-गुन हौं, कहति कहति सकुचात