Jo Ham Bhale Bure To Tere
शरणागति जो हम भले-बुरे तो तेरे तुमहिं हमारी लाज बड़ाई, विनती सुनु प्रभु मेरे सब तजि तव सरनागत आयो, निज कर चरन गहे रे तव प्रताप बल बदत न काहू, निडर भये घर चेरे और देव सब रंक भिखारी, त्यागे बहुत अनेरे ‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरि कृपा ते, पाये सुख जु घनेरे
Nand Dwar Ek Jogi Aayo Singi Nad Bajayo
शिव द्वारा दर्शन नंद द्वार इक जोगी आयो सिंगी नाद बजायो सीस जता ससि बदन सोहायो, अरुन नयन छबि छायो रोवत खीजत कृष्ण साँवरो, रहत नहीं हुलरायो लियो उठाय गोद नँदरानी, द्वारे जाय दिखायो अलख अलख करि लियो गोद में, चरन चूमि उर लायो श्रवण लाग कछु मंत्र सुनायो, हँसि बालक किलकायो चिर-जीवौ सुत महरि […]
Prat Kal Uthi Makhan Roti
बालकृष्ण की बान प्रातकाल उठि माखन रोटी, को बिनु माँगे दैहै अब उहि मेरे कुँवर कान्ह को, छिन-छिन गोदी लैहै कहियौ पथिक जाइ, घर आवहु, राम कृष्ण दोउ भैया दोउ बालक कत होत दुखारी, जिनके मो सी मैया ‘सूर’ पथिक सुनि, मोहि रैन-दिन, बढ्यो रहत उर सोच मेरो अलक-लड़ैतो मोहन, करत बहुत संकोच
Muraliya Kahe Guman Bhari
मुरली का जादू मुरलिया काहे गुमान भरी? जड़ तोरी जानों, पेड़ पहिचानों, मधुवन की लकरी कबहुँ मुरलिया प्रभु-कर सोहे, कबहुँ अधर धरी सुर-नर-मुनि सब मोहि गये हैं, देवन ध्यान धरी ‘सूर’ श्याम अस बस भई ग्वालिन, हरि पे ध्यान धरी
Maiya Mohi Dau Bahut Khijayo
खीजना मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायौ मोंसो कहत मोल को लीन्हौं, तोहिं जसुमति कब जायौ कहा कहौं यहि रिस के मारे, खेलन हौं नहिं जात पुनि पुनि कहत कौन है माता, को है तेरो तात गोरे नन्द जसोदा गोरी, तुम कत श्याम शरीर चुटकी दै दै हँसत ग्वाल सब, सिखे देत बलबीर तू मोहीं को […]
Radha Mohan Karat Biyaru
ब्यालू राधा मोहन करत बियारू एक ही थार सँवारे सुंदरि, वेष धर्यो मनहारी मधु मेवा पकवान मिठाई, षडरस अति रुचिकारी ‘सूरदास’ को जूठन दीनी, अति प्रसन्न ललितारी
Sabse Unchi Prem Sagai
प्रेम का नाता सबसे ऊँची प्रेम सगाई दुर्योधन को मेवा त्याग्यो, साग विदुर घर खाई जूठे फल सबरी के खाये, बहु विधि स्वाद बताई प्रेम के बस नृप सेवा कीन्हीं, आप बने हरि नाई राज सुयज्ञ युधिष्टिर कीन्हों, तामे झूठ उठाई प्रेम के बस पारथ रथ हांक्यो, भूलि गये ठकुराई ऐसी प्रीति बढ़ी वृन्दावन, गोपिन […]
Ham Na Bhai Vrindawan Renu
वृन्दावन हम न भईं वृंदावन-रेनु जिनपे चरनन डोलत नित प्रति, श्याम चरावैं धेनु हमतें धन्य परम ये द्रुम-बन, बाल बच्छ अरु धेनु ‘सूर’ ग्वाल हँसि बोलत खेलत, संग ही पीवत धेनु
Aao Manmohan Ji Jou Thari Baat
प्रतीक्षा आओ मनमोहनाजी, जोऊँ थारी बाट खान-पान मोहि नेक न भावै, नयनन लगे कपाट तुम देख्या बिन कल न पड़त है हिय में बहुत उचाट मीराँ कहे मैं भई रावरी, छाँड़ो नहीं निराट
Jogiya Chaai Rahyo Pardes
विरह व्यथा जोगिया, छाइ रह्यो परदेस जब का बिछड़्या फेर न मिलिया, बहुरि न दियो सँदेस या तन ऊपर भसम रमाऊँ, खार करूँ सिर केस भगवाँ भेष धरूँ तुम कारण, ढूँढत फिर फिर देस ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, जीवन व्यर्थ विशेष