रास लीला
आजु जुगल वर रास रचायो, कालिन्दी के कूल री सजनी
ब्रह्मा, शिव की मति बौराई, मनसिज के मन सूल री सजनी
बिच बिच गोपी श्याम सुशोभित, जनु मुक्ता-मणि माल री सजनी
बाजहिं बहु-विधि वाद्य अनूपम, राग रंग ध्वनि मीठी री सजनी
भाव भंगि करि नाचहिं गावहिं, उर उमँग्यौ अनुराग री सजनी
कटि किंकिनि की रुन-झुन धुनि सुनि, मुनि मन मोहिं रसाल री सजनी
चढ़िनभ-यान लखहिं सुर, सुर-तिय, बरसहिं सुमन-माल री सजनी
Category: Sanatan Dev
Man Ga Tu Madhav Rag Re
चेतावनी
मन गा तू माधव राग रे, कर माधव से अनुराग रे
कृष्ण भजन को नर तन पाया, यहाँ आय जग में भरमाया
छोड़ छोड़ यह माया छाया, श्याम सुधारस पाग रे
माधव ही तेरा अपना है, और सभी कोरा सपना है
दुनिया से जुड़ना फँसना है, इस बंधन से भाग रे
मोह निशा में बयस बिताई, अन्तकाल की वेला आई
कब तक यों सोयेगा भाई, तू हरि स्मरण हित जाग रे
Aaju In Nayananhi Nirakhe
माधव की मोहिनी
आजु इन नयनन्हि निरखे स्याम
निकसे ह्वै मेरे मारग तैं, नव नटवर अभिराम
मो तन देखि मधुर मुसकाने, मोहन-दृष्टि ललाम
ताही छिनते भए तिनहिं के, तन-मन-मति-धन-धाम
हौं बिनु मोल बिकी तिन चरनन्हि, रह्यौ न जग कछु काम
माधव-पद-पंकज मैं पायौ, मन मधुकर विश्राम
Kahe Aise Bhaye Kathor
निहोरा
काहे ऐसे भये कठोर
टेरत टेरत भई वयस अब, तक्यो न मेरी ओर
कहा करों, कोउ पंथ न दीखत, साधन भी नहिं और
पै तुम बिनु मेरे मनमोहन, दीखत और न ठौर
काहे अब स्वभाव निज भूले, करहुँ न करुना कोर
हूँ मैं दीन भिखारी प्यारे, तुम उदार-सिरमौर
Man Mohak Sab Saj Sajyo Ri
पुष्प सज्जा
मन मोहक सब साज सज्यो री
फूलमयी यह जुगल जोति लखि, सखियन को मन फूल रह्यो री
फूलन के ही मुकुट चन्द्रिका, फूलन ही को पाग फल्यौ री
फूलन के ही गजरा कुण्डल, फूलन को ही हार सज्यौ री
फूलन के ही कंकण कचुँकि, फूलन को भुजबन्ध बन्धौ री
फूलन के ही नूपुर पग में, बिछिया फूलनदार रच्यौ री
फूलन से ही मढ़ी मुरलिया, फूलन को कटिबन्ध बँध्यौ री
निरखि निरखि राधा मोहन छवि, तन मन मेरो फूलि रह्यौ री
Udho Kahan Sikhvo Yog
मोहन से योग
ऊधौ! कहा सिखावौ जोग
हमरो नित्य-जोग प्रियतम सौं, होय न पलक बियोग
वे ही हमरे मन मति सर्वस, वे ही जीवन प्रान
वे ही अंग-अंग में छाये, हमको इसका भान
Kisori Karat Keli Aangal Main
किसोरी की क्रीड़ा
किसोरी करत केलि आँगन में
चलत फिरत छम छम आँगन में, होत मगन अति मन में
कीरति की है लाड़-लड़ैती, बरसत रस छन छन में
वृषभानू की तो मनभानी, पगी हुई रसघन में
प्रीति-रीति की प्रतिमा पूरी, उपमा नहिं त्रिभुवन में
मेरे तो तन-मन की स्वामिनि, लगी लगन चरणन में
Madhav Mera Moh Mita Do
मोह मिटा दो
माधव! मेरा मोह मिटा दो
किया इसी ने विलग आप से, इसको नाथ हटा दो
जल तरंगवत भेद न तुमसे, इसने भेद कराया
इसही ने कुछ दूर-दूर रख, भव-वन में भटकाया
यही मोह माया है जिसने, तुमसे विरह कराया
जिसका मोह मिटा वह तुमसे निस्संदेह मिल पाया
Udho Braj Ki Yad Satave
ब्रज की याद
ऊधो! ब्रज की याद सतावै
जसुमति मैया कर कमलन की, माखन रोटी भावै
बालपने के सखा ग्वाल, बाल सब भोरे भारे
सब कुछ छोड़ मोहिं सुख दीन्हौ, कैसे जाय बिसारे
ब्रज-जुवतिन की प्रीति -रीति की, कहा कहौं मैं बात
लोक-वेद की तज मरजादा, मो हित नित ललचात
आराधिका, नित्य आराध्या, राधा को लै नाम
चुप रहि गए, बोल नहिं पाए, परे धरनि हिय थाम
Kou Ya Kanha Ko Samujhawe
नटखट कन्हैया
कोउ या कान्हा को समुझावै
कैसो यह बेटो जसुमति को, बहुत ही धूम मचावै
हम जब जायँ जमुन जल भरिबे घर में यह घुस जावै
संग सखा मण्डली को लै यह, गोरस सबहिं लुटावै
छींके धरी कमोरी को सखि, लकुटी सो ढुरकावै
आपु खाय अरु धरती पर, गोरस की कीच बनावै
जब हम जल ले चलहिं जमुन सों, यह काँकरी चलावै
फोर गगरिया बहिना हमरे, सूखे वसन भिंगावै
जित देखें दीखत तित ही यह, कैसो अचरज आवै
कैसी री माया मोहन की, ऊधम ही अति भावै