Janak Mudit Man Tutat Pinak Ke

धनुष भंग
जनक मुदित मन टूटत पिनाक के
बाजे हैं बधावने, सुहावने सुमंगल-गान
भयो सुख एकरस रानी राजा राँक के
दुंदभी बजाई, सुनि हरषि बरषि फूल
सुरगन नाचैं नाच नाय कहू नाक के
‘तुलसी’ महीस देखे दिन रजनीस जैसे
सूने परे सून से, मनो मिटाय आँक के

Aashadh Mas Ki Poonam Thi

महर्षि व्यास
आषाढ़ मास की पूनम थी, तब व्यास देव का जन्म हुआ
वेदों के मंत्रों, सूक्तों को, संहिता रूप से पिरो दिया
पुराण अठारह उप-पुराण में, वेदों का विस्तार किया
महाभारत द्वारा भारत का, सांस्कृतिक कोष निर्माण किया
साहित्य समृद्ध इतना उनका, गुरु पद से उनको मान दिया
भगवान व्यास के हम कृतज्ञ, उनको पूजें कर्त्तव्य हुआ
भारतीय संस्कृति दर्शन का, भण्डार हमें उपलब्ध हुआ

Pawan Mand Sugandh Shital

श्री बद्रीनाथ स्तवन
पवन मंद सुगंध शीतल, हेम मन्दिर शोभितम्
नित निकट गंगा बहति निर्मल, श्रीबद्रीनाथ विश्वम्भरम्
शेष सुमिरन करत निशिदिन, ध्यान धरत महेश्वरम्
श्री वेद, ब्रह्मा करत स्तुति, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम्
इन्द्र, चन्द्र, कुबेर, दिनकर, धूप दीप निवेदितम्
सिद्ध मुनिजन करत जय जय, श्रीबद्रीनाथ विश्वम्भरम्
शक्ति, गौरी, गणेश, शारद, नारद मुनि उच्चारणम्
योग ध्यान अपार लीला, श्रीबद्रीनाथ विश्वम्भरम्
यक्ष, किन्नर, करत कौतुक, गन्धर्व गान प्रकाशितम्
श्रीभूमि, लक्ष्मी चँवर डोलैं, श्रीबद्रीनाथ विश्वम्भरम्
कैलाश में एक देव निरंजन, शैल-शिखर महेश्वरम्
नृप युधिष्ठिर करत स्तुति, श्रीबद्रीनाथ विश्वम्भरम्
श्रीबद्रीनाथ की सरस स्तुति, करति पापविनाशनम्
कोटि-तीर्थ सुपुण्य सुन्दर, सहज अति फलदायकम्

Janani Main Na Jiu Bin Ram

भरत की व्यथा
जननी मैं न जीऊँ बिन राम
राम लखन सिया वन को सिधाये, राउ गये सुर धाम
कुटिल कुबुद्धि कैकेय नंदिनि, बसिये न वाके ग्राम
प्रात भये हम ही वन जैहैं, अवध नहीं कछु काम
‘तुलसी’ भरत प्रेम की महिमा, रटत निरंतर नाम

Krishna Priya Jamuna Maharani

श्री यमुना स्तवन
कृष्ण-प्रिया जमुना महारानी
श्यामा वर्ण अवस्था षोडश सुन्दर रूप न जाय बखानी
नयन प्रफुल्लित अम्बुज के से, नुपूर की झंकार सुहानी
नीली साड़ी शोभित करधनी मोतियन माल कण्ठ मनभानी
स्वर्ण रत्न निर्मित दो कुण्डल, दिव्य दीप्ति जिसकी नहीं सानी
आभूषण केयूर आदि की,असीमित शोभा सुखद सुहानी
देवी का सौन्दर्य मनोहर, धरे हृदय में ऋषि, मुनि ज्ञानी
सूर्य-नन्दिनी यमुना मैया, भक्ति कृष्ण की दो वरदानी

Pashu Hinsa Ka Ho Gaya Ant

भगवान बुद्ध
पशु-हिंसा का हो गया अन्त, भगवान बुद्ध अवतरित हुए
लख यज्ञ कर्म में पशु-वध को, अन्याय घोर प्रभु द्रवित हुए
वे कृपा सिन्धु करुणानिधि थे, वैराग्यवान् जो बुद्ध हुए
राजा शुद्धोधन की रानी, मायादेवी से जन्म लिया
सोचा पशु का वध क्रूर कर्म, जड़ता को तत्पर दूर किया
पशु-हिंसा द्वारा यज्ञों से, हो पूर्ण कामना तुच्छ भाव
अज्ञान-दोष से मुक्त किया, पशु-वध था केवल हीन भाव
वे तपोलीन महायोगी थे, पद्मासन में ध्यानस्थ रहें
पशुओं को जीवन दान दिया, हिंसा में व्यर्थ ही रक्त बहे  

Purte Nikasi Raghuvir Vadhu

वन में सीता राम
पुरतें निकसी रघुवीर वधू धरि धीर दए मग में डग द्वै
झलकीं भरि भाल कनीं जल कीं, पुट सूखि गए मधुराधर वै
फिरि बूझति है, चलनो अब केतिक पर्ण कुटी करिहौ कित ह्वै
तिय की लखि आतुरता पिय की अखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै

Gangajal Pap Baha Deta

गंगा माहात्म्य
गंगा जल पाप बहा देता
उसका जो सेवन नित्य करे, वह मन शांति को पा लेता
गंगाजी का तो दर्शन भी, मन को निश्चित निर्मल करता
जलरूप यही तो वासुदेव, सच्चा सुख जिनसे मिल जाता
जिसके मन में यह भाव जगे, संभव नित गंगा-स्नान करे
गंगा का सेवन सुमिरन हो, पातक उसके नितांत जरे

Prabhu Ko Prasanna Ham Kar Paye

श्रीमद्भागवत
प्रभु को प्रसन्न हम कर पाये
चैतन्य महाप्रभु की वाणी, श्री कृष्ण भक्ति मिल जाये
कोई प्रेम भक्ति के बिना उन्हें, जो अन्य मार्ग को अपनाये
सखि या गोपी भाव रहे, संभव है दर्शन मिल जाये
हम दीन निराश्रय बन करके, प्रभु प्रेमी-जन का संग करें
भगवद्भक्तों की पद-रज को, अपने माथे पर स्वतः धरें
यशुमति-नंदन श्री कृष्णचन्द्र, आराध्य परम एक मात्र यही
दुनिया के बंधन तोड़ सभी, हम वरण करें बस उनको ही
उत्कृष्ट ग्रन्थ श्रीमद्भागवत, सब शास्त्रों का है यही सार
हम पढ़ें, नित्य संकीर्तन हो, प्रभु भक्ति का उत्तम प्रकार

Suni Sundar Ben Sudharas Sane

सुभाषित
सुनि सुन्दर बैन सुधारस-साने, सयानी है जानकी जानी भली
तिरछे करि नैन दै सैन तिन्हैं, समुझाई कछु मुसुकाई चली
‘तुलसी’ तेहि अवसर सोहैं सबै, अवलोकति लोचन-लाहु अली
अनुराग-तड़ाग में भानु उदै, बिगसी मनी मंजुल कंज-कली