राधा कृष्ण भेंट
खेलत हरि निकसे ब्रज खोरी
गए स्याम रवि – तनया के तट, अंग लसति चंदन की खोरी
औचक ही देखि तहँ राधा, नैन बिसाल , भाल दिए रोरी
‘सूर’ स्याम देखत ही रीझे, नैन नैन मिलि परी ठगोरी
Category: Radha-Krishna
Jugal Chavi Harati Hiye Ki Pir
युगल छवि
जुगल छवि हरति हिये की पीर
कीर्ति-कुँअरि ब्रजराम-कुँअर बर ठाढ़े जमुना-तीर
कल्पवृच्छ की छाँह सुशीतल, मंद-सुगंध समीर
मुरली अधर, कमल कर कोमल, पीत-नील-द्युति चीर
मुक्ता-मनिमाला, पन्ना गल, सुमन मनोहर हार
भूषन विविध रत्न राजत तन, बेंदी-तिलक उदार
श्रवननि सुचि कुण्डल झुर झूमक, झलकत ज्योति अपार
मुसुकनि मधुर अमिय दृग-चितवनि, बरसत सुधा सिंगार
Man Main Yah Rup Niwas Kare
युगल स्वरूप
मन में यह रूप निवास करे
दो गात धरे वह एक तत्व, अनुपम शोभा जो चित्त हरे
वृषभानु-सुता देवकी-नन्दन के अंगों का बेजोड़ लास्य
मधुरातिमधुर जिनका स्वरूप, अधरों पर उनके मंद हास्य
गल स्वर्णहार, बैजंति-माल, आल्हादिनि राधा मनमोहन
वृन्दावन में विचरण करते, वे वरदाता अतिशय सोहन
निमग्न रास क्रीड़ा में जो, रति कामदेव का गर्व हरे
आनन्द-कन्द सुषमा सागर, रे मनवा उनको क्यों न वरे
ऋषि मुनियों द्वारा वे सेवित, शिव ब्रह्मा उनका ध्यान धरे
जो प्राणनाथ गोपीजन के, उनके चरणों में नमन करे
Khelan Ke Mis Kuwari Radhika
राधा कृष्ण लीला
खेलन के मिस कुँवरि राधिका, नंदमहर के आई
सकुच सहित मधुरे करि बोली, घर हैं कुँवर कन्हाई ?
सुनत श्याम कोकिल सम बानी, निकसे अति अतुराई
माता सों कछु करत कलह हरि, सो डारी बिसराई
मैया री, तू इन को चीन्हति, बारम्बार बताई
जमुना-तीर काल्हि मैं भूल्यो, बाँह पकरि लै आई
आवत यहाँ तोहि सकुचित है, मैं दै सोंह बुलाई
‘सूर’ श्याम ऐसे गुन-आगर , नागरि बहुत रिझाई
Vando Shri Radha Charan
युगल स्वरूप झाँकी
वन्दौं श्री राधाचरन, पावन परम उदार
भय विषाद अज्ञानहर, प्रेम भक्ति दातार
रास-बिहारिनि राधिका, रासेश्वर नँद-लाल
ठाढ़े सुंदरतम परम, मंडल रास रसाल
मधुर अधर मुरली धरे, ठाढ़े स्याम त्रिभंग
राधा उर उमग्यौ सु-रस रोमांचित अँग-अंग
विश्वविमोहिनी श्याम की, मनमोहिनि रसधाम
श्याम चित्त उन्मादिनी, राधा नित्य ललाम
परम प्रेम-आनंदमय, दिव्य जुगल रस-रूप
कालिंदी-तट कदँब-तल, सुषमा अमित अनूप
सुधा-मधुर-सौंदर्य निधि, छलकि रहे अँग-अँग
उठत ललित पलपल विपुल, नव नव रूप तरंग
स्याम स्वामिनी राधिके! करौ कृपा को दान
सुनत रहैं मुरली मधुर, मधुमय बानी कान
करौ कृपा श्री राधिका! बिनवौं बारम्बार
बनी रहे स्मृति मधुर, मंगलमय सुखसार
Muskan Madhur Mohini Chitwan
श्री राधा कृष्ण स्तवन
मुस्कान मधुर, मोहिनी चितवन, राधा गोविंद का हो चिन्तन
वृषभानु-कुमारी, नँद-नन्दन, मैं चरण वन्दना करता हूँ
मुख नयन कमल से खिले हुए, सिर स्वर्ण चन्द्रिका मोर मुकुट
केशर-कस्तूरी तिलक भाल, मैं ध्यान उन्हीं का करता हूँ
श्री अंगों की शोभा अनूप, नीलाम्बर पीताम्बर पहने
फूलों के गजरे रत्न हार, वह रूप दिव्य मन धरता हूँ
जो नृत्य गीत के अनुरागी, ब्रज सुन्दरियाँ जिनके प्रेमी
नट नटी वेष में जो सज्जित, मैं शरण उन्हीं की लेता हूँ
उत्कृष्ट प्रेम के जो सागर, वे प्रिया और प्रियतम अनुपम
जो सभी सुखों के सारभूत, मैं भजन उन्हीं का करता हूँ
आल्हादिनि राधा मनमोहन, क्रीड़ास्थल जिनका वृन्दावन
वे महाभाव रसराज वही,यशगान उन्हीं का करता हूँ
Pratham Saneh Duhun Man Janyo
राधे श्याम मिलन
प्रथम सनेह दुहुँन मन जान्यो
सैन-सैन कीनी सब बातें, गुपत प्रीति सिसुता प्रगटान्यो
खेलन कबहुँ हमारे आवहु, नंद-सदन ब्रज – गाँउँ
द्वारे आइ टेरि मोहि लीजो, कान्ह है मेरो नाउँ
जो कहियै घर दूरि तुम्हारो, बोलत सुनियै टेर
तुमहिं सौंह वृषभानु बबा की, प्रात-साँझ इक फेर
सूधी निपट देखियत तुमकों, तातें करियत साथ
‘सूर’ श्याम नागर उत नागरि, राधा दोऊ मिलि साथ
Advitiy Madhuri Jodi
युगल माधुर्य
अद्वितीय माधुरी जोड़ी, हमारे श्याम श्यामा की
रसीली रसभरी अखियाँ, हमारे श्याम श्यामा की
चितवनि कटीली बाँकी सुघड़ सूरत मधुर बतियाँ
लटकनें कान में सुन्दर, हमारे श्याम श्यामा की
मुकुट और चन्द्रिका माथे, अधर पर पान की लाली
अहो! कैसी भली छबि है, हमारे श्याम श्यामा की
प्रेम में वे पगे विहरें, श्री वृन्दावन की कुंजो में
बसे मन मे यही शोभा, अनूठी श्याम श्यामा की
Shyam Dekh Darpan Main Bole
राधिका श्याम सौन्दर्य
श्याम देख दर्पण में बोले ‘सुनो राधिका प्यारी
आज बताओ मैं सुन्दर या तुम हो सुभगा न्यारी’
असमंजस में पड़ी राधिका, कौन अधिक रुचिकारी
‘हम का कहें कि मैं गोरी पर, तुम तो श्याम बिहारी’
जीत गई वृषभानु-दुलारी, मुग्ध हुए बनवारी
भक्तों के सर्वस्व राधिका-श्याम युगल मनहारी
Baso Mere Nenan Me Yah Jori
राधा कृष्ण माधुर्य
बसौ मेरे नैनन में यह जोरी
सुन्दर श्याम कमल – दल – लोचन, सँग वृषभानु किशोरी
मोर-मुकुट मकराकृति कुण्डल, पीताम्बर झकझोरी
‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरे दरस को, कहा बरनौं मति थोरी