Jagat Main Radha Nam Amol

श्री राधा स्मरण जगत में राधा नाम अमोल व्यर्थ न करो बकवाद बावरे, राधा राधा बोल राधा नाम सरस अति सुन्दर, हीरा सम अनमोल जातें सुखद वस्तु नहिं जग में, भक्तनि लीयो तोल राधा कच कारे घुँघराले, बाँके लोचन लोल हिय मनहर कटि छीन उदर बर, रूप अनूप सुडोल

Radha Mul Shakti Avatar

शक्ति रुपिणी राधा राधा मूल-शक्ति अवतार प्रेम वही, पुरषार्थ वही है, वही सृष्टि-विस्तार परम ज्योति उतरी बरसाना, महिमा अपरम्पार सेवाधाम बना वृन्दावन, लीला मधुर अपार सरल-सरस जीवन अति प्रमुदित, कैसा मृदु-व्यवहार राधा-प्रेरित कान्हा द्वारा, हुआ जगत् उद्धार 

Radha Ras Ki Khani Sarasta Sukh Ki Beli

श्री राधा राधा रस की खानि, सरसता सुख की बेली नन्दनँदन मुखचन्द्र चकोरी, नित्य नवेली नित नव नव रचि रास, रसिक हिय रस बरसावै केलि कला महँ कुशल, अलौकिक सुख सरसावै यह अवनी पावन बनी, राधा पद-रज परसि के जिह राज सुरगन इन्द्र अज, शिव सिर धारें हरषि के

Shri Radha Nam Madhur Anmol

राधा नाम अनमोल श्री राधा नाम मधुर अनमोल नाम सुखद राधा प्यारी को, मुँह में मिश्री घोल सुख सरिता श्री राधा स्वामिनि, दर्शन कर सुख पाऊँ अंग अंग अनुराग श्याम का, चरणों में सिर नाऊँ दो अक्षर राधा रानी के, हिय में इन्हें बसाऊँ सोच विचार और सब त्यागूँ, राधा के गुण गाऊँ  

Hamari Radha Ati Sukumari

श्री राधा हमारी राधा अति सुकुमारी विहरत है वृषभानु महल में, चहुँ दिशि करत उजारी लोचन युगल खिले पंकज दोउ, मातु बजावति तारी आवति दौरि अङक में उछरैं, हँसनि देत किलकारी गोरो अंग श्याम हिय धारति, श्यामा श्याम बिहारी दुग्ध धवलिया तनु छाया सम, होंहि न पियते न्यारी  

Aarti Shri Vrashbhanu Lali Ki

राधारानी आरती आरती श्रीवृषभानुलली की, सत्-चित-आनंद-कद-कली की भयभंजनि भव-सागर-तारिणि, पाप-ताप-कलि-कल्मष-हारिणि, दिव्यधाम गोलोक-विहारिणि, जन पालिनि जग जननि भली की अखिल विश्व आनन्द विधायिनि, मंगलमयी वैभव सुख-दायिनि, नंद नँदन पद-प्रेम प्रदायिनि, अमिय-राग-रस रंग-रली की नित्यानन्दमयी आल्हादिनि लीलाएँ-आनंद-प्रदायिनि, रसमयी प्रीतिपूर्ण आल्हादिनी, सरस कमलिनि कृष्ण-अली की नित्य निकुंजेश्वरि श्री राजेश्वरि, परम प्रेमरूपा परमेश्वरि, गोपिगणाश्रयि गोपिजनेश्वरि, विमल विचित्र भाव-अवली की

Kisori Karat Keli Aangal Main

किसोरी की क्रीड़ा किसोरी करत केलि आँगन में चलत फिरत छम छम आँगन में, होत मगन अति मन में कीरति की है लाड़-लड़ैती, बरसत रस छन छन में वृषभानू की तो मनभानी, पगी हुई रसघन में प्रीति-रीति की प्रतिमा पूरी, उपमा नहिं त्रिभुवन में मेरे तो तन-मन की स्वामिनि, लगी लगन चरणन में  

Main Kou Bichadi Cheri Tihari

बिछुड़ी चेरी मैं कोउ बिछुड़ी चेरि तिहारी तुम सौ बिछुर स्वामिनी! जग में डोली मारी मारी अपनी का करतूत कहों, यह लीला सबहि तिहारी जहाँ गई ज्यों त्यों सुख दुख में, सारी वयस गुजारी सबसों हो निरास अब राधे! आई सरन तिहारी अपुनी को अपनाय हरहु अब, हिय की हलचल भारी देहु चरण चाकरी लाड़िली, […]