महालक्ष्मी स्तवन
जय कमला हे महालक्ष्मी जय, सकल जगत माता सुखदाई
रत्न मुकुट मस्तक पर राजै, चन्द्रहार गल शोभा पाई
कानन में कुंडल, कर कंकण, पग नूपुर झँकार सुहाई
गरुड़ चढ़ी हरि संग विराजे, शेषनाग तन सेज बिछाई
‘ब्रह्मानंद’ करे जो सुमिरन, सुख संपति हो जाय सवाई
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Shri Mahalakshmi Jag Janani Ka
श्रीमहालक्ष्मी स्तवन
श्री महालक्ष्मी जगजननी का, हम श्रद्धापूर्वक करें ध्यान
जिनका है वर्ण स्वर्ण जैसा, उनकी महिमा का करें गान
सद्भाव, अतिथि की सेवा हो, सत्कर्म जहाँ नित होता हो
देवार्चन-प्रेम भाव मन का, आवास वहीं हो माता का
माँ को अति प्रिय है शील सत्य, सत्संग कीर्तन जहाँ नित्य
जहाँ प्राणि-मात्र प्रति प्रेम भाव, वहाँ धन का नहीं होगा अभाव
जहाँ भोग, क्रूरता और क्लेश, दारिद्य वहाँ करता प्रवेश
व्यवहार कपट अरु वचन झूठ, महालक्ष्मी जाती वहाँ रूठ
सबके प्रति करुणा हो मन में, आस्तिकता श्रद्धा हो प्रभु में
करुणामयी मैया कृपा करो, कालुष्य हृदय का आप हरो