रथ-यात्रा
आज सखी, रथ बैठे नंदलाल
अति विचित्र पहिरे पट झीनो,उर सोहत वन-माल
वामभाग वृषभानु-नंदिनी, पहिर कसूंभी सारी
तैसोई घन उमड्यो चहुँ दिशि, गरजत है अति भारी
सुन्दर रथ मणि-जटित मनोहर, अनुपम है सब साज
चपल तुरंग चलत धरणी पे, रह्यो घोष सब गाज
ताल पखावज बीन बाँसुरी, बाजत परम रसाल
‘गोविंददास’ प्रभु पे बरखत, विविध कुसुम ब्रजबाल
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Aado Devaki Garbha Jananam
श्रीमद्भागवत्
आदौ देवकि देव गर्भ-जननम्, गोपी गृहे वर्धनम्
माया मोहित जीव-ताप हरणं, गोवर्द्धनो धारणम्
कंसच्छेदन कौरवादि हननं, कुन्ती-सुता पालनम्
एतद् श्रीमद्भागवत् पुराण कथितं, श्रीकृष्णलीलामृतम्
Aashadh Mas Ki Poonam Thi
महर्षि व्यास
आषाढ़ मास की पूनम थी, तब व्यास देव का जन्म हुआ
वेदों के मंत्रों, सूक्तों को, संहिता रूप से पिरो दिया
पुराण अठारह उप-पुराण में, वेदों का विस्तार किया
महाभारत द्वारा भारत का, सांस्कृतिक कोष निर्माण किया
साहित्य समृद्ध इतना उनका, गुरु पद से उनको मान दिया
भगवान व्यास के हम कृतज्ञ, उनको पूजें कर्त्तव्य हुआ
भारतीय संस्कृति दर्शन का, भण्डार हमें उपलब्ध हुआ
Krishna Priya Jamuna Maharani
श्री यमुना स्तवन
कृष्ण-प्रिया जमुना महारानी
श्यामा वर्ण अवस्था षोडश सुन्दर रूप न जाय बखानी
नयन प्रफुल्लित अम्बुज के से, नुपूर की झंकार सुहानी
नीली साड़ी शोभित करधनी मोतियन माल कण्ठ मनभानी
स्वर्ण रत्न निर्मित दो कुण्डल, दिव्य दीप्ति जिसकी नहीं सानी
आभूषण केयूर आदि की,असीमित शोभा सुखद सुहानी
देवी का सौन्दर्य मनोहर, धरे हृदय में ऋषि, मुनि ज्ञानी
सूर्य-नन्दिनी यमुना मैया, भक्ति कृष्ण की दो वरदानी
Guru Vishnu Vidhi Mahesh Hai
गुरु वन्दना
गुरु विष्णु, विधि महेश हैं, साक्षात् ही परमेश हैं
अभिमान का नहीं लेश है, वे ज्ञान रूप दिनेश हैं
धर्म की गति है गहन, उसको समझना है अगम
गुरु दूर करते मोह माया, दुर्ज्ञेय को करते सुगम
भव-सिन्धु को कैसे तरें, दुःख द्वेष का आगार हैं
यदि सद्गुरु करूणा करें, समझो कि बेड़ा पार है
अनिरूद्ध करते ज्ञान-पथ, सन्मार्ग दिखलाते गुरु
मद, मोह, तम का नाश कर, आलोक भरते हैं गुरु
गुरुदेव, सलिल-सरोज सम हैं, शुद्ध सद्गुण-धाम है
ऐसे कृपा-निधि देव को, प्रणिपात और प्रणाम है
Bhai Duj Bal Mohan Dou
भाई दूज
भाई दूज बल मोहन दोऊ, बहन सुभद्रा के घर आये
विविध भाँति श्रृंगार कियो पट भूषण बहुत सुहाये
अति प्रसन्न हो भोजन परसे, भाई के मन भाये
तत्पश्चात् तिलक बीड़ा दे, बहन अधिक सुख पाये
श्रीफल और मिठाई से भाई की गोद भराई
‘रामदास’ प्रभु तुम चिर-जीवौ, दे अशीष हरषाई
Mhimamai Devi Savitri
सावित्री देवी स्तवन
महिमामयी देवी सावित्री, अनुकम्पा हम पर करें आप
हे मूल प्रकृति, ब्रह्मा की प्रिया, हरलो कृपया सब ताप पाप
तेजोमय विग्रह वाली हो, मंगल मयी मोक्षदायिनी हो
भक्तों पे अनुग्रह करती हो, सम्पत्ति तथा सुख देती हो
हे! प्रीतिदायिनी हों प्रसन्न, सुखदात्री मेरे क्लेश हरो
मैं दास तुम्हारा हूँ विपन्न, आनन्द स्वरूपिणि कृपा करो
Var De Veena Vadini Var De
सरस्वती स्तुति
वर दे वीणावादिनि! वर दे!
प्रिय स्वतंत्र रव अमृत मंत्र, नव भारत में भर दे
काट अंध उर के बंधन-स्तर, बहा जननि, ज्योर्तिमय निर्झर
कलुष-भेद-तम हर, प्रकाश भर, जगमग जग कर दे
नव गति, नव लय, ताल-छंद, नव, नवल कंठ, नव जलद मंद्र रव
नव नभ के नव विहग वृन्द को नव पर, नव स्वर दे वर दे
Vedon Ki Mata Gayatri
वेदमाता गायत्री
वेदों की माता गायत्री, सद्बुद्धि हमें कर दो प्रदान
महात्म्य अतुल महादेवी का, शास्त्र पुराण करते बखान
वरदायिनि देवी का विग्रह, ज्योतिर्मय रवि-रश्मि समान
ब्रह्मस्वरूपिणि, सर्वपूज्य, परमेश्वरी की महिमा महान
जो विद्यमान रवि-मण्डल में, उन आदि शक्ति को नमस्कार
अभिलाषा पूर्ण करें, जप लो, गायत्री-मंत्र महिमा अपार
Shri Vishnu Dattatrey Hi
भगवान दत्तात्रेय
श्री विष्णु दत्तात्रेय ही, सादर नमन उनको करुँ
रहते दिगम्बर वेष में, अज्ञान हरते सद्गुरु
दुख दूर करने प्राणियों का, तप किया मुनि अत्रि ने
बेटा बनूँगा आपका, बोला प्रकट हो विष्णु ने
आत्रेय माता अनसुया, जिनमें अहं निःशेष था
सर्वोच्च सती के रूप में, प्रख्यात उनका नाम था
सती धर्म की लेने परीक्षा, ब्रह्मा हरि हर आ गये
सामर्थ्य सती का था प्रबल, नवजात शिशु वे हो गये
अपना पिलाया दूध माँ ने, पूर्ववत् उनको किया
‘माँ! पुत्र होंगे हम तुम्हारे’, वरदान तीनों ने दिया
माँ अनसुया आत्रेय का, जय घोष श्रद्धा से करें
उपदेश व आदर्श उनका, हृदय में अपने धरें
श्री दत्त योगीराज थे, सिद्धों के परमाचार्य थे
निर्लोभ वे उपदेश दे, इसलिए गुरुदत्त थे
आह्लदकारी चन्द्रमा सा, वर्ण दत्तात्रेय का
काली जटा तन भस्म धारे, निर्देश देते ज्ञान का