शिवशंकर
शंकर तेरी जटा में शोभित है गंग-धारा
काली घटा के अंदर, चपला का ज्यों उजारा
गल मुण्डमाल राजे, शशि शीश पर बिराजे
डमरू निनाद बाजे, कर में त्रिशूल साजे
मृग चर्म वसन धारी, नंदी पे हो सवारी
भक्तों के दुःख हारी, गिरिजा के सँग विहारी
शिव नाम जो उचारे, सब पाप दोष जारे
भव-सिंधु से ‘ब्रह्मानंद’, उस पार शिव उतारे
Category: Shivratri
Are Ham Naam Jape Shiv Ka
शिव महिमा
अरे! हम नाम जपें शिव का, नित्य श्रद्धा से बारम्बार
महादेव की महिमा भारी, कोई न पाये पार
आशुतोष को भोले शंकर, कहता सब संसार
आप हिमालय पे गौरी संग, करे दिव्य अभिसार
रौद्र रूप में करते हैं शिव, दुष्टों का संहार
गंग विराजे जटा बीच, शशि मस्तक का श्रृंगार
बम बम भोले ओढरदानी, कर दो भवनिधि पार
Shivshankar Se Jo Bhi Mange
औढरदानी शिव
शिवशंकर से जो भी माँगे, वर देते उसको ही वैसा
औढरदानी प्रभु आशुतोष, दूजा न देव कोई ऐसा
कर दिया भस्म तो कामदेव, पर वर प्रदान करते रति को
वे व्यक्ति भटकते ही रहते, जो नहीं पूजते शंकर को
काशी में करे जो देह त्याग, निश्चित ही मुक्त वे हो जाते
महादेव अनुग्रह हो जिस पर, मनवांछित फल को वे पाते
Shiva Shiv Bane Radhika Shyam
शिवाशिव महिमा
शिवा शिव बने राधिका श्याम
एक बार कैलाश धाम में, शंकर दुर्गा संग
करने लगे विहार वहाँ पर, अतिशय अद्भुत ढंग
रूप मनोहर अति देवी का, मुग्ध हुए शिवशंकर
लगे सोचने नारी को यह, रूप मिला अति सुन्दर
शिव बोले मैं बनूँ राधिका, तुम नँदनंदन प्यारी
बने प्रभु वृषभानुनंदिनी, दक्षसुता गिरिधारी
देव देवियों ने भी तत्पर, लिया वहाँ अवतार
राधा कृष्ण रूप देवी शिव, हरे धरा का भार
यह प्रसंग ‘देवी-पुराण’ का, पढ़े सुने चित लाय
धुले सर्वथा मैल हृदय का, भक्तों के मन भाय
Shivshankar Ka Jo Bhajan Kare
आशुतोष शिव
शिवशंकर का जो भजन करें, मनचाहा वर प्रभु से पाते
वे आशुतोष औढरदानी, भक्तों के संकट को हरते
जप में अर्जुन थे लीन जहाँ पर, अस्त्र-शस्त्र जब पाने को
दुर्योधन ने निशिचर भेजा, अर्जुन का वध करने को
मायावी शूकर रूप धरे, शीघ्र ही वहाँ पर जब आया
शिव ने किरात का रूप लिया, कुन्तीसुत समझ नहीं पाया
रण-कौशल द्वारा अर्जुन ने, जब शौर्य दिखाया शम्भु को
प्रभु सौम्य रूप धर प्रकट हुए, आश्चर्य हो गया अर्जुन को
दर्शन पाकर गिर गया पार्थ, तव आशुतोष के चरणों में
तो अस्त्र पाशुपत दिया उसे, जो चाहा था उसने मन में