सरयू तट
राघव सरयू तट पर विहरें
भरत लक्ष्मण और शत्रुघन, सब आनन्द भरें
पुष्पों की सुन्दर मालाएँ, सबही कण्ठ धरें
मन्द मन्द मुसकान अधर पे, शोभा चित्त हरे
कल कल ध्वनि सरयू के जल की, सबके मन हरषे
देव-देवियाँ सभी गगन से, सुमन बहुत बरषे

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