Makhan Ki Chori Te Sikhe

चित चोर माखन की चोरी तै सीखे, कारन लगे अब चित की चोरी जाकी दृष्टि परें नँद-नंदन, फिरति सु मोहन के सँग भोरी लोक-लाज, कुल कानि मेटिकैं, बन बन डोलति नवल-किसोरी ‘सूरदास’ प्रभु रसिक सिरोमनि, देखत निगम-बानि भई भोरी