Ja Par Dinanath Dhare

हरि कृपा जा पर दीनानाथ ढरै सोइ कुलीन, बड़ो सुन्दर सोई, जा पर कृपा करै रंक सो कौन सुदामा हूँ ते, आप समान करै अधिक कुरूप कौन कुबिजा ते, हरि पति पाइ तरै अधम है कौन अजामिल हूँ ते, जम तहँ जात डरै ‘सूरदास’ भगवंत-भजन बिनु, फिरि फिरि जठर परै

Deh Dhare Ko Karan Soi

अभिन्नता देह धरे कौ कारन सोई लोक-लाज कुल-कानि न तजिये, जातौ भलो कहै सब कोई मात पित के डर कौं मानै, सजन कहै कुटुँब सब सोई तात मात मोहू कौं भावत, तन धरि कै माया बस होई सुनी वृषभानुसुता! मेरी बानी, प्रीति पुरातन राखौ गोई ‘सूर’ श्याम नागारिहि सुनावत, मैं तुम एक नाहिं हैं दोई

Madhuri Murali Adhar Dhare

मुरली का जादू माधुरी मुरली अधर धरैं बैठे मदनगुपाल मनोहर सुंदर कदँब तरैं इत उत अमित ब्रजबधू ठाढ़ी, विविध विनोद करैं गाय मयूर मधुप रस माते नहीं समाधि टरैं झाँकी अति बाँकी ब्रजसुत की, कलुष कलेश हरैं बसत नयन मन नित्य निरंतर, नव नव रति संचरैं

Jo Dhanush Ban Dhare

श्रीराम स्तवन जो धनुष-बाण धारे, कटि पीत वस्त्र पहने वे कमल-नयन राघव, सर्वस्व हैं हमारे वामांग में प्रभु के, माँ जानकी बिराजै नीरद सी जिनकी आभा, आया शरण तुम्हारे रघुनाथ के चरित का, कोई न पार पाये यश-गान होता जिनका, रघुनाथ पाप हारी शिव-धनुष जिसने तोड़ा, मिथिला से नाता जोड़ा असुरों के जो विनाशक, रक्षा […]