Dadhi Bechati Braj Galini Fire

प्रेमानुभूति दधि बेचति ब्रज-गलिनि फिरै गोरस लैन बुलावत कोऊ, ताकी सुधि नैकौ न करै उनकी बात सुनति नहिं स्रवनन, कहति कहा ए घरनि जरै दूध, दही ह्याँ लेत न कोऊ, प्रातहि तैं सिर लिऐं ररै बोलि उठति पुनि लेहु गुपालै, घर-घर लोक-लाज निदरै ‘सूर’ स्याम कौ रूप महारस, जाकें बल काहू न डरै

Man Fula Fula Fire Jagat Main Kaisa Nata Re

असार संसार मन फूला-फूला फिरे जगत में कैसा नाता रे मात कहै यह पुत्र हमारा, बहन कहै वीर मेरा रे भाई कहै यह भुजा हमारी, नारी कहै नर मेरा रे पेट पकड़ के माता रोवे, बाँह पकड़ के भाई रे लपटि झपटि के तिरिया रोवे, हंस अकेला जाई रे चार गजी चादर मँगवाई, चढ़ा काठ […]