Gopal Gokul Vallabhi

श्री कृष्ण वन्दना गोपाल गोकुल बल्लभी प्रिय गोपगोसुत बल्लभं चरनारबिंदमहं भजे भजनीय सुर मुनि दुर्लभं घनश्याम काम अनेक छबि, लोकाभिराम मनोहरं किंजल्क-वसन, किसोर मूरति, भूरि गुन करुनाकरं सिर केकि-पच्छ बिलोल कुंडल, अरुन बनरुह लोचनं गुंजावतंस विचित्र सब अँग धातु, भव-भय मोचनं कच-कुटिल, सुंदर तिलक भ्रू, राका मयंक समाननं अपहरन ‘तुलसीदास’ त्रास विहार वृंदा काननं

Dou Sut Gokul Nayak Mere

वियोग दोउ सुत गोकुल नायक मेरे काहे नंद छाँड़ि तुम आये, प्रान जीवन सबके रे तिनके जात बहुत दुख पायो, शोक भयो ब्रज में रे गोसुत गाय फिरत चहूँ दिसि में, करे चरित नहिं थोरे प्रीति न करी राम दसरथ की, प्रान तजे बिन हेरे ‘सूर’ नन्द सों कहति जसोदा, प्रबल पाप सब मेरे

Gokul Me Bajat Aha Badhaai

श्रीकृष्ण प्राकट्य गोकुल में बाजत अहा बधाई भीर भई नन्दजू के द्वारे, अष्ट महासिद्धि आई ब्रह्मादिक रुद्रादिक जाकी, चरण-रेनु नहीं पाई सो ही नन्दजू के पूत कहावत, कौतुक सुन मोरी माई ध्रुव, अमरीष, प्रह्लाद, विभीषण, नित-नित महिमा गाई सो ही हरि ‘परमानँद’ को ठाकुर, ब्रज प्रसन्नता छाई