रामाश्रय
जानकीनाथ सहाय करे, तब कौन बिगाड़ सके नर तेरो
सूरज, मंगल, सोम, भृगुसुत, बुध और गुरु वरदायक तेरो
राहु केतु की नाहिं गम्यता, तुला शनीचर होय है चेरो
दुष्ट दुशासन निबल द्रौपदी, चीर उतारण मंत्र विचारो
जाकी सहाय करी यदुनन्दन, बढ़ गयो चीरको भाग घनेरो
गर्भकाल परीक्षित राख्यो, अश्वत्थामा को अस्त्र निवार्यो
भारत में भूरही के अंडा, तापर गज को घंटो गेर्यो
जिनकी सहाय करे करूणानिधि, उनको जग में भाग्य घनेरो
रघुवंशी संतन सुखदायी, ‘तुलिदास’ चरनन को चेरो
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Bhojan Kare Shyam Kanan Main
वन-विहार
भोजन करे श्याम कानन में
ग्वाल-बाल संग हँसे हँसाये, मुदित सभी है मन में
छीके खोल सखा सब बैठे, यमुना तट पर सोहे
उनके मध्य श्याम-सुन्दर छबि, सबके मन को मोहे
जूठे का संकोच नहीं, सब छीन झपट के खायें
सभी निहारें मोहन मुखड़ा, स्वाद से भोजन पायें
छटा निराली नटनागर की, धरी वेणु कटि-पट में
घृत मिश्रित दधि-भात ग्रास को, पकड़े अपने कर में
यज्ञ-भोगता ग्वालों के सँग, वन में भोग लगाये
अद्भुत लीला निरख स्वर्ग के, देव अधिक हर्षाये
Jasumati Man Abhilash Kare
माँ की अभिलाषा
जसुमति मन अभिलाष करे
कब मेरो लाल घुटुरूअन रैंगे, कब धरती पग धरै
कब द्वै दाँत दूध के देखौ, कब तोतरे मुख वचन झरै
कब नंद ही बाबा कहि बोले, कब जननी कहि मोहि ररै
‘सूरदास’ यही भाँति मैया , नित ही सोच विचार करै
Man Main Yah Rup Niwas Kare
युगल स्वरूप
मन में यह रूप निवास करे
दो गात धरे वह एक तत्व, अनुपम शोभा जो चित्त हरे
वृषभानु-सुता देवकी-नन्दन के अंगों का बेजोड़ लास्य
मधुरातिमधुर जिनका स्वरूप, अधरों पर उनके मंद हास्य
गल स्वर्णहार, बैजंति-माल, आल्हादिनि राधा मनमोहन
वृन्दावन में विचरण करते, वे वरदाता अतिशय सोहन
निमग्न रास क्रीड़ा में जो, रति कामदेव का गर्व हरे
आनन्द-कन्द सुषमा सागर, रे मनवा उनको क्यों न वरे
ऋषि मुनियों द्वारा वे सेवित, शिव ब्रह्मा उनका ध्यान धरे
जो प्राणनाथ गोपीजन के, उनके चरणों में नमन करे
Shyam Bina Yah Koun Kare
श्याम की मोहिनी
स्याम बिना यह कौन करै
चित वहिं तै मोहिनी लगावै, नैक हँसनि पै मनहि हरै
रोकि रह्यौ प्रातहिं गहि मारग, गिन करि के दधि दान लियौ
तन की सुधि तबहीं तैं भूली, कछु कहि के दधि लूट लियौ
मन के करत मनोरथ पूरन, चतुर नारि इहि भाँति कहैं
‘सूर’ स्याम मन हर्यौ हमारौ, तिहि बिन कहिं कैसे निबहैं
Shivshankar Ka Jo Bhajan Kare
आशुतोष शिव
शिवशंकर का जो भजन करें, मनचाहा वर प्रभु से पाते
वे आशुतोष औढरदानी, भक्तों के संकट को हरते
जप में अर्जुन थे लीन जहाँ पर, अस्त्र-शस्त्र जब पाने को
दुर्योधन ने निशिचर भेजा, अर्जुन का वध करने को
मायावी शूकर रूप धरे, शीघ्र ही वहाँ पर जब आया
शिव ने किरात का रूप लिया, कुन्तीसुत समझ नहीं पाया
रण-कौशल द्वारा अर्जुन ने, जब शौर्य दिखाया शम्भु को
प्रभु सौम्य रूप धर प्रकट हुए, आश्चर्य हो गया अर्जुन को
दर्शन पाकर गिर गया पार्थ, तव आशुतोष के चरणों में
तो अस्त्र पाशुपत दिया उसे, जो चाहा था उसने मन में
Dhuri Dhusrit Nil Kutil Kach Kare Kare
अन्तर्धान लीला
धुरि धूसरित नील कुटिल कच, कारे कारे
मुखपै बिथुरे मधुर लगें, मनकूँ अति प्यारे
झोटा खात बुलाक, मोर को मुकुट मनोहर
ऐसो वेष बनाइ जाउ जब, बन तुम गिरिधर
तब पल-पल युग-युग सरिस, बीतत बिनु देखे तुम्हें
अब निशिमहँ बन छाँड़ि तुम, छिपे छबीले छलि हमें
Sandhyopasan Dwij Nitya Kare
सन्ध्योपासना
संध्योपासन द्विज नित्य करे, पातक उनके अनिवार्य जरे
प्रातः, मध्याह्न तथा सायं, होए उपासना क्लेश हरे
संध्यावन्दन में सूरज को, जल से हम अर्घ्य प्रदान करें
ब्रह्मस्वरूपिणी गायत्री का, मंत्र विधिवत् जाप करे
संध्या-महत्व को नहीं जाने वह नहीं करे तक संध्या को
शुभ कर्मों का फल नहीं मिले, जीते जी क्षुद्र कहें उसको
Satsang Kare Jo Jivan Main
शिव स्तवन
सत्संग करे जो जीवन में, हो जाये बेड़ा पार
काशी जाये मधुरा जाये, चाहे न्हाय हरिद्वार
चार धाम यात्रा कर आये, मन में रहा विकार
बिन सत्संग ज्ञान नहीं उपजे, हो चाहे यत्न हजार
‘ब्रह्मानंद’ मिले जो सदगुरु, हो अवश्य उद्धार
Apurva Nratya Hanuman Kare
मारुति-सुत का नृत्य
अपूर्व नृत्य हनुमान करें
है दिव्य देह, सिन्दूर लेप, करताल करो में चित्त हरें
आनन्दित मुख की श्रेष्ठ छटा, श्रीराम नाम का गान करें
चरणों में मोहक घुँघरू, दो नयनों से प्रेमाश्रु झरें
कटि में शोभित है रक्ताम्बर, अंजनी-सुत हम पर कृपा करें