Kahe Aise Bhaye Kathor

निहोरा काहे ऐसे भये कठोर टेरत टेरत भई वयस अब, तक्यो न मेरी ओर कहा करों, कोउ पंथ न दीखत, साधन भी नहिं और पै तुम बिनु मेरे मनमोहन, दीखत और न ठौर काहे अब स्वभाव निज भूले, करहुँ न करुना कोर हूँ मैं दीन भिखारी प्यारे, तुम उदार-सिरमौर

Ajahu Na Nikase Pran Kathor

आतुरता अजहुँ न निकसे प्राण कठोर दरसन बिना बहुत दिन बीते, सुन्दर प्रीतम मोर चार प्रहर, चारों युग बीते, भई निराशा घोर अवधि गई अजहूँ नहिं आये, कतहुँ रहे चितचोर कबहुँ नैन, मन -भर नहिं देखे, चितवन तुमरी ओर ‘दादू’ ऐसे आतुर विरहिणि, जैसे चाँद चकोर