Mo Sam Kon Kutil Khal Kami

शरणागति मो सम कौन कुटिल खल कामी जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी हरिजन छाँड़ि हरी-विमुखन की, निसिदिन करत गुलामी पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी ‘सूर’ पतित को ठौर कहाँ है, सुनिए श्रीपति स्वामी

Radha Ju Mo Pe Aaj Dharo

श्री राधाजी की कृपा राधाजू! मो पै आजु ढरौ निज, निज प्रीतम की पद-रज-रति, मोय प्रदान करौ विषम विषय रस की सब आशा, ममता तुरत हरौ भुक्ति मुक्ति की सकल कामना, सत्वर नास करौ निज चाकर चाकर की सेवा मोहि प्रदान करौ राखौ सदा निकुंज निभृत में, झाड़ूदार बरौ  

Mo Se Kaha Na Jay Kaha Na Jay

मोहन के गुण मो से कहा न जाय, कहा न जाय, मनमोहन के गुण सारे अविनाशी घट घट वासी, यशुमति नन्द दुलारे लाखों नयना दरस के प्यासे, वे आँखों के तारे गोपियन के संग रास रचाये, मुरलीधर मतवारे शरद पूर्णिमा की रजनी थी, रास रचायो प्यारे उनके गुण सखि कितने गाऊँ, वे सर्वस्व हमारे