Udho Mohi Braj Bisarat Nahi

ब्रज की याद ऊधौ, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं वृंदावन गोकुल की स्मृति, सघन तृनन की छाहीं प्रात समय माता जसुमति अरु नंद देखि सुख पावत मीठो दधि अरु माखन रोटी, अति हित साथ खवावत गोपी ग्वाल-बाल संग खेलत, सब दिन हँसत सिरात ‘सूरदास’ धनि धनि ब्रजबासी जिनसों हँसत ब्रजनाथ

Kaha Kahati Tu Mohi Ri Mai

मनोवेग कहा कहति तू मोहि री माई नंदनँदन मन हर लियो मेरौ, तब तै मोकों कछु न सुहाई अब लौं नहिं जानति मैं को ही, कब तैं तू मेरे ढ़िंग आई कहाँ गेह, कहँ मात पिता हैं, कहाँ सजन गुरुजन कहाँ भाई कैसी लाज कानि है कैसी, कहा कहती ह्वै ह्वै रिसहाई अब तौ ‘सूर’ […]

Maiya Mohi Dau Bahut Khijayo

खीजना मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायौ मोंसो कहत मोल को लीन्हौं, तोहिं जसुमति कब जायौ कहा कहौं यहि रिस के मारे, खेलन हौं नहिं जात पुनि पुनि कहत कौन है माता, को है तेरो तात गोरे नन्द जसोदा गोरी, तुम कत श्याम शरीर चुटकी दै दै हँसत ग्वाल सब, सिखे देत बलबीर तू मोहीं को […]

Maiya Ri Mohi Makhan Bhawe

माखन का स्वाद मैया री मोहिं माखन भावै मधु मेवा पकवान मिठाई, मोहिं नहीं रूचि आवै ब्रज-जुबती इक पाछे ठाढ़ी, सुनति श्याम की बातैं मन मन कहति कबहुँ अपने घर, देखौं माखन खातैं बैठे जाय मथनियाँ के ढिंग, मैं तब रहौं छिपानी ‘सूरदास’ प्रभु अंतरजामी, ग्वालिन मन की जानी

Mohi Taj Kahan Jat Ho Pyare

हृदयेश्वर श्याम मोहि तज कहाँ जात हो प्यारे हृदय-कुंज में आय के बैठो, जल तरंगवत होत न न्यारे तुम हो प्राण जीवन धन मेरे, तन-मन-धन सब तुम पर वारे छिपे कहाँ हो जा मनमोहन, श्रवण, नयन, मन संग तुम्हारे ‘सूर’ स्याम अब मिलेही बनेगी, तुम सरबस हो कान्ह हमारे

Mohi Kahat Jubati Sab Chor

चित चोर मोहिं कहति जुवति सब चोर खेलत कहूँ रहौं मैं बाहिर, चितै रहतिं सब मेरी ओर बोलि लेहिं भीतर घर अपने, मुख चूमति भर लेति अँकोर माखन हेरि देति अपने कर, कई विधि सौं करति निहोर जहाँ मोहिं देखति तँहै टेरति, मैं नहिं जात दुहाई तोर ‘सूर’ स्याम हँसि कंठ लगायौ, वे तरुनी कहँ […]

Jab Se Mohi Nand Nandan Drashti Padyo Mai

मोहन की मोहिनी जब से मोहि नँद नंदन, दृष्टि पड्यो माई कहा कहूँ या अनुपम छवि, वरणी नहीं जाई मोरन की चन्द्रकला शीश मुकुट सोहे केसर को तिलक भाल तीन लोक मोहे कुण्डल की झलक तो, कपोलन पर छाई मानो मीन सरवर तजि, मकर मिलन आई कुटिल भृकुटि तिलक भाल, चितवन में टौना खंजन अरु […]

Shyam Mohi Mat Tarsavo Ji

विरह व्यथा श्याम मोहि मत तरसावोजी तुम्हरे कारन सब सुख छोड्या, अब क्यूँ देर लगावोजी विरह विथा लागी उर अंतर, सो तुम आय बुझावोजी अब मत छोड़ो मोहि प्रभुजी, हँस कर तुरत बुलावोजी ‘मीराँ’ दासी जनम-जनम की, अंग से अंग मिलावोजी

Gyan Mohi Dije Maharani

देवी स्तवन ज्ञान मोहिं दीजै महारानी मैं धरूँ तिहारो ध्यान, भक्ति मोहिं दीजै महारानी मैं करूँ सदा गुणगान, ज्ञान मोहि दीजै महारानी ब्रह्मा-शिव-हरि तुमको ध्यावे, हे अभीष्ट दानी ऋषि-मुनि जन सब करे वन्दना, हे माँ कल्याणी जय दुर्गे दुर्गति, दुःख नाशिनि अमित प्रभा वाली देवि सरस्वति लक्ष्मी रूपिणि, ललिता, महाकाली कर्णफूल, केयूर अरु कंगन, रत्न […]