Mai Moko Chand Lagyo Dukh Den

विरह व्यथा माई, मोकौं चाँद लग्यौ दुख दैन कहँ वे स्याम, कहाँ वे बतियाँ, कहँ वह सुख की रैन तारे गिनत गिनत मैं हारी, टपक न लागे नैन ‘सूरदास’ प्रभु तुम्हारे दरस बिनु, विरहिनि कौं नहिं चैन

Moko Kahan Dhundhe Re Bande

आत्मज्ञान मोको कहाँ ढूँढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना पर्वत के वास में ना जप ताप में, ना ही योग में, ना मैं व्रत उपवास में कर्म काण्ड में मैं नहीं रहता, ना ही मैं सन्यास में खोज होय साँची मिल जाऊँ, इक पल की ही […]