Ho Ji Hari Kit Gaye Neha Lagay

विरह व्यथा हो जी हरि!कित गए नेहा लगाय नेह लगाय मेरो मन हर लियो, रस-भरी टेर सुनाय मेरे मन में ऐसी आवै, प्राण तजूँ विष खाय छाँड़ि गए बिसवासघात करि, नेह की नाव चढ़ाय ‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, रहे मधुपुरी छाय