Jabahi Ban Murli Stravan Padi

मुरली का जादू जबहिं बन मुरली स्रवन पड़ी भौंचक भई गोप-कन्या सब, काम धाम बिसरी कुल मर्जाद वेद की आज्ञा, नेकहुँ नाहिं डरी जो जिहि भाँति चली सो तेसेंहि, निसि में उमंग भरी सुत, पति-नेह, भवन-जन-संका, लज्जा नाहिं करी ‘सूरदास’ प्रभु मन हर लीन्हों, नागर नवल हरी