Jagahu Lal Gwal Sab Terat

प्रभाती
जागहु लाल ग्वाल सब टेरत
कबहुँ पीत-पट डारि बदन पर, कबहुँ उघारि जननि तन हेरत
सोवत में जागत मनमोहन, बात सुनत सब की अवसेरत
बारम्बार जगावति माता, लोचन खोलि पलक पुनि गेरत
पुनि कहि उठी जसोदा मैया, उठहु कान्ह रवि किरनि उजेरत
‘सूर’ स्याम हँसि चितै मातु-मुख, पट कर लै, पुनि-पुनि मुख फेरत

Sab Se Bada Dharma Ka Bal Hai

धर्म निष्ठा
सबसे बड़ा धर्म का बल है
वह पूजनीय जिसको यह बल, जीवन उसका ही सार्थक है
ऐश्वर्य, बुद्धि, विद्या, धन का, बल होता प्रायः लोगों को
चाहे शक्तिमान या सुन्दर हो, होता है अहंकार उसको
इन सबसे श्रेष्ठ धर्म का बल, भवसागर से जो पार करे
जिस ओर रहे भगवान् कृष्ण, निश्चय ही उनको विजय वरे 
संस्कारित जीवनसब भाँति श्रेष्ठ यह जीवन हो, आवश्यकीय सत्कार्य करें
ये धर्म, अर्थ अरु काम, मोक्ष, चारों को यथा विधि प्राप्त करें
परिवार, साधु के हित में ही, जीवन में धनोपार्जन हो
अनुचित उपाय से धन पाना, दुष्कर्म बड़ा जो कभी न हो
हम अर्थ, काम के सेवन में, मर्यादित हों श्रेयस्कर है
नश्वर है दोनों अतः धर्म का, मार्ग सनातन हितकर है
परहित सेवामय जीवन हो, मनुष्य मात्र का धर्म यही
दधीचि ने दे दी अस्थियाँ भी, प्रतिमान क्या ऐसा और कहीं
हम आत्मज्ञान को प्राप्त करें, तो मोक्ष हमें उपलब्ध यहीं
आत्मा परमात्मा पृथक नहीं, सच्चिदानन्द हैं भेद नहीं

Dekhe Sab Hari Bhog Lagat

अन्नकूट
देखे सब हरि भोग लगात
सहस्र भुजा धर उत जेमत है, इन गोपन सों करत है बात
ललिता कहत देख हो राधा, जो तेरे मन बात समात
धन्य सबहिं गोकुल के वासी, संग रहत गोकुल के नाथ
जेमत देख नंद सुख दीनों, अति प्रसन्न गोकुल नर-नारी
‘सूरदास’ स्वामी सुख-सागर, गुण-आगर नागर दे तारी

Main Apani Sab Gai Chare Ho

गौ चारण लीला
मैं अपनी सब गाइ चरैहौं
प्रात होत बल के संग जैहौं, तेरे कहे न रैहौं
ग्वाल-बाल गाइनि के भीतर, नेकहु डर नहिं लागत
आजु न सोवौं, नंद-दुहाई, रैनि रहौंगो जागत
और ग्वाल सब गाइ चरैहैं, मैं घर बैठौ रैहौं
‘सूर’ श्याम, तुम सोइ रहो अब, प्रात जान मैं दैहौं

Mohi Kahat Jubati Sab Chor

चित चोर
मोहिं कहति जुवति सब चोर
खेलत कहूँ रहौं मैं बाहिर, चितै रहतिं सब मेरी ओर
बोलि लेहिं भीतर घर अपने, मुख चूमति भर लेति अँकोर
माखन हेरि देति अपने कर, कई विधि सौं करति निहोर
जहाँ मोहिं देखति तँहै टेरति, मैं नहिं जात दुहाई तोर
‘सूर’ स्याम हँसि कंठ लगायौ, वे तरुनी कहँ बालक मोर

Yah Lila Sab Karat Kanhai

अन्नकूट
यह लीला सब करत कन्हाई
जेंमत है गोवर्धन के संग, इत राधा सों प्रीति लगाई
इत गोपिनसों कहत जिमावो, उत आपुन जेंमत मन लाई
आगे धरे छहों रस व्यंजन, चहुँ दिसि तें सोभा अधिकाई
अंबर चढ़े देव गण देखत, जय ध्वनि करत सुमन बरखाई
‘सूर’ श्याम सबके सुखकारी, भक्त हेतु अवतार सदाई

Sab Din Gaye Vishay Ke Het

विस्मरण
सब दिन गये विषय के हेत
तीनों पन ऐसे ही बीते, केस भये सिर सेत
रूँधी साँस, मुख बैन न आवत चन्द्र ग्रसहि जिमि केत
तजि गंगोदक पियत कूप जल, हरि तजि पूजत प्रेत
करि प्रमाद गोविंद, बिसार्यौ, बूड्यों कुटुँब समेत
‘सूरदास’ कछु खरच न लागत, रामनाम सुख लेत

Sundar Shyam Sakha Sab Sundar

सुंदर श्याम
सुंदर स्याम सखा सब सुंदर, सुंदर वेष धरैं गोपाल
सुंदर पथ सुंदर गति आवन, सुंदर मुरली शब्द रसाल
सुंदर लोक, सकल ब्रज सुंदर, सुंदर हलधर, सुंदर चाल
सुंदर वचन विलोकनि सुंदर, सुंदरि गन सब करति विचार
‘सूर’ स्याम को संग सुख सुंदर, सुंदर भक्त हेतु अवतार

Tumhare Kaaran Sab Sukh Chodya

विरह व्यथा
तुम्हरे कारण सब सुख छोड्यो, अब मोहि क्यूँ तरसावो
बिरह व्यथा लागी उर अंदर, सो तुम आय बुझावो
अब छोड्याँ नहिं बनै प्रभूजी, हँस कर तुरत बुलाओ
‘मीराँ’ दासी जनम जनम की, अंग सूँ अंग लगाओ

Swami Sab Sansar Ka Ji Sancha Shri Bhagwan

संसार के स्वामी
स्वामी सब संसार का जी, साँचा श्री भगवान
दान में महिमा थाँरी देखी, हुई हरि मैं हैरान
दो मुठ्ठी चावल की फाँकी, दे दिया विभव महान
भारत में अर्जुन के आगे, आप हुया रथवान
ना कोई मारे, ना कोई मरतो, यो कोरो अज्ञान
चेतन जीव तो अजर अमर है, गीताजी को ज्ञान
म्हारा पे प्रभु किरपा करजो, दासी अपणी जान
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, चरण-कमल में ध्यान