Main To Sanware Ke Rang Rachi

प्रगाढ़ प्रीति मैं तो साँवरे के रँग राची साजि सिंगार बाँधि पग घुँघरू, लोक-लाज तजि नाची गई कुमति लई साधु की संगति, स्याम प्रीत जग साँची गाय गाय हरि के गुण निस दिन, काल-ब्याल सूँ बाँची स्याम बिना जग खारो लागत, और बात सब काँची ‘मीराँ’ गिरिधर-नटनागर वर, भगति रसीली जाँची

Mere Pyare Sanware

प्राणाधार मेरे प्यारे साँवरे! तुम कित रहे दुराय आवहु मेरे लाड़िले! प्रान रहे अकुलाय प्रिया प्रानधन लाड़िले, अटके तुम में प्रान आवन की आसा लगी, देत न इत उत जान ललित लड़ैती स्वामिनी! सुषमा की आगार तू ही पिय के प्रीति की, एकमात्र आधार आजा मेरे लाड़िले! नयननि रखिहों तोय ऐसी कर करुना कबहुँ, फेर […]