Aao Manmohan Ji Jou Thari Baat

प्रतीक्षा आओ मनमोहनाजी, जोऊँ थारी बाट खान-पान मोहि नेक न भावै, नयनन लगे कपाट तुम देख्या बिन कल न पड़त है हिय में बहुत उचाट मीराँ कहे मैं भई रावरी, छाँड़ो नहीं निराट

Kanha Thari Jowat Rah Gai Baat

विरह व्यथा कान्हा! थारी जोवत रह गई बाट जोवत-जोवत इक पग ठाढ़ी, कालिन्दी के घाट छल की प्रीति करी मनमोहन, या कपटी की बात ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, ब्रज को कियो उचाट