शरणागति
आया शरण तुम्हारी प्रभुजी, रखिये लाज हमारी
कनकशिपु ने दिया कष्ट, प्रह्ललाद भक्त को भारी
किया दैत्य का अंत तुम्हीं ने, भक्तों के हितकारी
ग्रस्त हुआ गजराज ग्राह से, स्तुति करी तुम्हारी
आर्तस्तव सुन मुक्त किया, गज को तुमने बनवारी
पांचाली की लगा खींचने, जब दुःशासन सारी
किया प्रवेश चीर में उसके, होने दी न उघारी
विपदा में भक्तों की रक्षा, करते कृष्ण मुरारी
करो अनुग्रह मेरे पर, हे चक्र-सुदर्शन धारी 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *